Jai Shri Krishna Ji Janmashtami

 

जन्माष्टमी का त्योहार


Jai Shri Krishna Janmashtami Ji

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श्री कृष्ण जी 🙏 

     श्री कृष्ण जी का जीवन एक अद्वितीय और दिव्य गाथा है, जो न केवल हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए प्रेरणादायक है, बल्कि पूरे विश्व के लिए एक महत्त्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर है। श्रीकृष्ण जी का जन्म द्वापर युग में हुआ था, और उनका जीवन अनगिनत लीलाओं, चमत्कारों, और शिक्षाओं से भरा हुआ है।

जन्म और बाल्यकाल

श्रीकृष्ण जी का जन्म मथुरा नगरी में हुआ था। उनके पिता वासुदेव और माता देवकी थीं। उस समय मथुरा पर कंस का शासन था, जो अत्यंत क्रूर और अत्याचारी राजा था। कंस को यह भविष्यवाणी की गई थी कि उसकी बहन देवकी का आठवां पुत्र उसका वध करेगा। इस भय से कंस ने देवकी और वासुदेव जी को कारागार में बंदी बना लिया और उनके सात संतानों को एक-एक करके मार डाला। लेकिन जब श्रीकृष्ण जी का जन्म हुआ, तो आधी रात को चमत्कारिक रूप से कारागार के द्वार स्वतः खुल गए, और वासुदेव उन्हें एक टोकरी में रखकर गोकुल ले गए, जहां नंद बाबा और यशोदा मैया ने उन्हें पाला।

गोकुल में श्रीकृष्ण जी का बचपन बहुत ही अद्भुत और लीलाओं से भरा रहा। उन्हें "माखन चोर" के रूप में जाना जाता था क्योंकि वे अपने मित्रों के साथ मिलकर घर-घर जाकर माखन चुराते थे। उनके द्वारा की गई माखन चोरी और गोपियों के साथ की गई शरारतें आज भी लोककथाओं और भजनों में गाई जाती हैं। उनकी बाल लीलाओं में एक अद्वितीय आकर्षण और प्रेम का संदेश छिपा हुआ है।

चमत्कार और कंस का वध

श्रीकृष्ण जी ने अपने बाल्यकाल में कई चमत्कार किए। जब वे छोटे थे, तब पूतना नामक राक्षसी ने उन्हें मारने का प्रयास किया, लेकिन श्रीकृष्ण जी ने उसे मार डाला। इसके बाद उन्होंने शकटासुर और तृणावर्त जैसे राक्षसों का भी वध किया। उन्होंने यमुना नदी में बसे कालिया नाग को भी पराजित किया और उसे यमुना छोड़कर जाने पर विवश कर दिया।

श्रीकृष्ण जी की सबसे प्रसिद्ध लीला है गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाना। एक बार जब इंद्रदेव ने गोकुल वासियों से नाराज होकर मूसलधार वर्षा कर दी, तो श्रीकृष्ण जी ने गोवर्धन पर्वत को उठाकर गोकुलवासियों की रक्षा की। इसके बाद से गोकुल में गोवर्धन पूजा की परंपरा शुरू हुई।

बचपन बीतते ही श्रीकृष्ण जी ने मथुरा वापस जाकर कंस का वध किया। कंस के अत्याचारों से मुक्त करने के लिए उन्होंने मल्लयुद्ध में कंस को हराकर उसे मार डाला और अपने माता-पिता को कारागार से मुक्त किया। इस घटना के बाद वे मथुरा के नायक बन गए और वहां के लोगों ने उन्हें राजा का दर्जा दिया, लेकिन उन्होंने यह जिम्मेदारी अपने बड़े भाई बलराम को सौंपी।

द्वारका और रासलीला

कंस के वध के बाद मथुरा पर मगध के राजा जरासंध ने कई बार आक्रमण किया। इन हमलों से बचने और अपने लोगों की रक्षा के लिए श्रीकृष्ण जी ने समुद्र के किनारे द्वारका नगरी की स्थापना की। द्वारका एक अत्यंत सुंदर और सुरक्षित नगरी थी, जहां श्री कृष्ण जी ने अपनी राजधानी बनाई।

द्वारका में रहते हुए श्रीकृष्ण जी ने रुक्मिणी, सत्यभामा, जाम्बवती और अन्य रानियों से विवाह किया। उनके विवाह संबंधी कहानियां भी अत्यंत रोचक हैं। रुक्मिणी का हरण, सत्यभामा के साथ पारिजात वृक्ष का विवाद, और जाम्बवती के साथ उनके विवाह की कथा उनके चरित्र की विविधता को दर्शाती हैं।

श्रीकृष्ण जी के जीवन का एक और महत्वपूर्ण पक्ष उनकी रासलीलाएं हैं। गोकुल में गोपियों के साथ उनका प्रेम और रास का अद्भुत प्रदर्शन है। रासलीला का आध्यात्मिक अर्थ भक्ति और प्रेम का अद्वितीय संगम है। गोपियों के प्रति श्रीकृष्ण का प्रेम निष्काम और दिव्य था। उन्होंने यह संदेश दिया कि भक्ति में प्रेम सबसे महत्वपूर्ण है, और जब प्रेम शुद्ध होता है, तो वह भक्ति का सर्वोच्च रूप बन जाता है।

महाभारत और गीता का उपदेश

श्रीकृष्ण का सबसे महत्वपूर्ण योगदान महाभारत के युद्ध में है। वे पांडवों के परम मित्र और मार्गदर्शक थे। जब कौरवों और पांडवों के बीच संघर्ष हुआ, तो श्रीकृष्ण ने युद्ध को रोकने का प्रयास किया, लेकिन असफल रहे। युद्ध में उन्होंने अर्जुन के सारथी के रूप में उन्हें गीता का उपदेश दिया।

गीता के उपदेश में श्रीकृष्ण ने जीवन के गूढ़ रहस्यों को उजागर किया। उन्होंने अर्जुन को सिखाया कि जीवन में किसी भी परिस्थिति में अपने कर्तव्यों से विमुख नहीं होना चाहिए। कर्मयोग, भक्तियोग और ज्ञानयोग के माध्यम से उन्होंने अर्जुन को जीवन का सही मार्ग दिखाया। गीता के उपदेश में उन्होंने यह भी बताया कि आत्मा अमर है और शरीर नश्वर। इसलिए मनुष्य को अपने कर्मों का फल भगवान पर छोड़कर निरंतर अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए।

द्वारका का विनाश और श्रीकृष्ण का निर्वाण

महाभारत के युद्ध के बाद श्रीकृष्ण द्वारका लौट आए, लेकिन उनके जीवन का अंतिम चरण भी अत्यंत दु:खद रहा। यदुवंशियों में आपसी कलह के कारण अंततः द्वारका का विनाश हुआ। इस विनाश के बाद श्रीकृष्ण ने प्रभास क्षेत्र में जाकर समाधि ले ली। एक दिन एक बहेलिये के तीर से उन्हें चोट लग गई, और उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया। उनका देहावसान एक युग का अंत था, लेकिन उनकी शिक्षाएं, उपदेश और जीवन संदेश आज भी जीवंत हैं और मानवता के लिए प्रेरणा स्रोत हैं।

श्रीकृष्ण का संदेश और महत्व

श्रीकृष्ण का जीवन और उनके द्वारा दिए गए उपदेश आज भी प्रासंगिक हैं। उन्होंने धर्म, सत्य, और प्रेम की महत्ता को समझाया। वे न केवल एक आदर्श राजा थे, बल्कि एक मित्र, गुरु, और ईश्वर के अवतार भी थे। उनकी शिक्षाएं हमें यह सिखाती हैं कि जीवन में कठिनाइयों का सामना करते हुए भी अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए।

श्रीकृष्ण का जीवन एक उदाहरण है कि कैसे एक व्यक्ति धर्म, कर्म और भक्ति के माध्यम से न केवल अपना जीवन सार्थक बना सकता है, बल्कि दूसरों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बन सकता है। उनका व्यक्तित्व अनंत है, और उनके द्वारा स्थापित मूल्य और आदर्श आज भी मानवता के लिए मार्गदर्शक हैं।

श्रीकृष्ण की लीला, उपदेश, और जीवन गाथा एक ऐसा प्रकाशस्तंभ है, जो हमें सही दिशा दिखाने में सदैव सक्षम है। उनके जीवन से प्रेरणा लेकर हम भी अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं और धर्म, सत्य और प्रेम के मार्ग पर चल सकते हैं।


जय श्री कृष्णा जी 🙏

Jai Shri Krishna Ji Janmashtami Jai Shri Krishna Ji Janmashtami Reviewed by Blogger on August 24, 2024 Rating: 5

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